आज पत्रकारिता के कुछ छात्रों से सोर्स और कोर्स को लेकर बात चल रही थी..ज्यादातर के दिमाग में एक ही बात ने घर कर रखा है कि बिना जैक के कुछ नही होने वाला, वो ज्ञान और महनत कि बजाय जैक-बैक को तहजीह देते नज़र आते है| लेकिन उनके दिमाग में महनत और लगन कि जगह ये बातें भरने वाले लोग ठीक कर रहे है? क्या अधूरा ज्ञान और जैक बैक से आगे बढ़ने कि सोचने वाले युवा एक अच्छे पत्रकार बन पाएंगे??
जब भारत में पत्रकारिता की शुरूआत हुर्इ तो यह एक मिशन के तौर पर थी। देश आजाद होने के बाद से पत्रकारिता ने कर्इ आयामों को छुआ लेकिन आज के इस बाजारीकरण ने पत्रकारिता को भी एक मंडी बना दिया है। इस मंडी में कोर्इ भी आ सकता है, बस नामी-गिरामी संस्थानों में पढ़ने के लिए आपकी जेबें गर्म होनी चाहिए। और उसके साथ-साथ आपके सगे-संबंधी भी मीडिया में होने चाहिए। अगर नहीं हैं तो आपको जैक बनानी होगी। सिर्फ पत्रकारिता पढ़ने से आपको नौकरी नहीं मिलने वाली। मेरे एक साथी पत्रकार भार्इ ने तो मुझे यहां तक कहा कि भार्इ पत्रकारिता के साथ-साथ चाटुकारिता भी आनी चाहिए।
आए दिन मीडिया पर सवाल उठ रहे हैं। दिन-ब-दिन पत्रकारिता का स्तर गिर रहा है। लोगों का मीडिया के ऊपर विश्वास भी कम हो रहा है। व्यवसायीकरण के इस दौर ने समाचार चैनलों को मनोरंजन चैनल बना लिया है। रही-सही कसर मीडिया शिक्षण संस्थानों ने पूरी कर दी है। कुछ संस्थानों को छोड़कर पत्रकारिता पढ़ाना भी एक व्यवसाय मात्र रह गया है। नौसिखिए या जिन्हें खुद पता नहीं है कि पत्रकारिता क्या होती है, वे पत्रकारिता की शिक्षा दे रहे हैं। ऐसे में हम आने वाले पत्रकारों से अच्छी पत्रकारिता की उम्मीद कैसे कर सकते हैं।
लेकिन इन सब बातों के बीच हम भूल जाते हैं कि पत्रकारिता क्या है? पत्रकारिता में आने वाले छात्रों के मन में पहले से ही यह बात भर दी जाती है कि इस क्षेत्र में आप बिना संबंध कुछ नहीं कर सकते। लेकिन कोर्इ यह नहीं सोचता कि भविष्य के इन पत्रकारों के मानस पटल पर इसका क्या असर पड़ेगा ? वो पढ़ार्इ से ज्यादा संबंधों पर ध्यान देंगे। वो यही सोचेंगे कि पत्रकारिता सिर्फ जैक वाले लोगों के लिए है। काफी छात्र तो इस कारण से ही पत्रकारिता छोड़ देते हैं कि इस क्षेत्र में उनके कोर्इ संबंध नहीं हैं।
आज के दौर में कोर्इ भी प्रोफेशन भार्इ-भतीजावाद से अछूता नहीं है। जहां तक मीडिया की बात है तो यहां भी यह सब काफी देखने को मिलता है, लेकिन इसका मतलब यह कतर्इ नहीं है कि मीडिया में पढ़ने-लिखने वालों के लिए कोर्इ जगह नहीं हैं। आज भी शीर्ष पदों पर विद्वान और पत्रकारिता के लिए जुनून रखने वाले लोग ही बैठे हैं और ऐसी बातों से नए छात्रों को भ्रमित करने वाले लागों को सोचना चाहिए कि इस तरह की बातें करने के बजाय छात्रों का उत्साहवर्धन करें ताकि वो हतोत्साहित न हों।
और पत्रकारिता में आने वाले छात्रों से मैं सिर्फ यही कहना चाहूंगा कि, आप संबंधों के बल पर किसी मीडिया संस्थान में प्रवेश जरूर पा सकते हैं लेकिन प्रगति करने के लिए ज्ञान और पत्रकारिता के लिए जुनून होना बेहद जरूरी है। बाकी आप लोगों पर है कि आप किसे जरूरी मानते हैं,
सोर्स या कोर्स ?
- हिमांशु डबराल
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