Saturday, December 29, 2012
मैं दामनी हूँ...जी हाँ दामनी...
Wednesday, November 28, 2012
Tuesday, August 14, 2012
आजादी...क्यों मजाक करते हो भाई...
कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए...
Saturday, May 26, 2012
'हवा टैक्स' के लिए तैयार हो जाइये...
होने को तो ये भी हो सकता है की अमेरिका हम पर दबाब बनाये की हम ईरान से हवा आयत न करें क्युकी ईरान हवा बम भी बना रहा है...अब सोच ही रहे है तो कुछ आगे भी सोच लेते है...शायद अमीरों के क्षेत्र के लिए अमेरिका से हवा आयात की जाये...गरीबों के लिए तो यूपी बिहार से हवा मंगवाई ही जाएगी...हो सकता है फिर कुछ आँख मारने वाले बाबा सरीखे लोग जड़ीबूटियों की तरह हिमालय के पास की हवा का व्यापार शुरू कर दें...तब शायद पार्टियों के चुनावी एजेंडे में हवा के दाम कम करने का वादा भी हो...शायद कोई पार्टी हवा के नाम पर आम चुनाव जीत जाये... 'जिसकी हवा होगी वही जीतेगा'...अगर ऐसा होता है तो तब शायद इस देश में धर्म-जाति के नाम पर राजनीती बंद....अरे रे...बंद तो हो ही नही सकती लेकिन शायद कम ज़रूर हो जाये...लेकिन राज ठाकरे का क्या करेंगे तब शायद वो यूपी बिहार से आने वाली हवाओं पर महाराष्ट्र में रोक लगाने कि मांग करने लगे...हो सकता है जब हवा कि इतनी मांग बढ़ जाये तो तेलंगाना कि तर्ज पर कहीं हवा प्रदेश कि मांग ना हो...एक बात तो भूल ही रहा हूँ कहीं पकिस्तान से आने वाली आतंकी हवाओं से निपटने के नाम पर सरकार पैसा हवा में उड़ा दे और फिर देश में हवा घोटाला सामने आये...
जब पैसे नही लग रहे है तो ओर सोच लेते है...हो सकता है अगले राष्ट्रमंडल खेलों में हवा सप्लाई का जिम्मा कलमाड़ी को दे दिया जाये, और राजा भी दुबारा स्पेक्ट्रम कि नीलामी की मांग करें वो भी हवा टेक्स लगाने के बाद और फिर उन्हें जेल कि हवा खाने को मिले.... लेकिन जो भी होगा आम आदमी तो भी पिसेगा...क्यूकी उसकी किस्मत में ये ही लिखा है...वो हल्ला मचा सकता है, रो सकता है...लेकिन कुछ कर नही सकता बस कर दे सकता है...अब टैक्स की इतनी बातें करने के बाद कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी कहीं ऐसा भी न हो की-
सुना है चाह पर भी टैक्स लगने वाला है, आह पर भी टैक्स लगने वाला है;
या खुदा!! हसीनों को देखें कैसे? सुना है निगाह पर भी टैक्स लगने वाला है!
-हिमांशु डबराल
Saturday, May 12, 2012
माँ तो माँ होती है....
दुनिया में सबसे निस्वार्थ रिश्ता 'माँ'... 'माँ' सिर्फ एक संबोधन नही है... इस इस शब्द के पीछे छिपी एक पूरी दुनिया, एक गजब का एहसास, एक महान इंसान, संपूर्णता, पवित्रता, त्याग, समता और ममता, की मूरत... 'माँ', एक दृढ विश्वास, बच्चों का अभेद कवच, अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर गुजरने की चाहत रखने वाली स्त्री 'माँ'...अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए अपने सपनों की बलि चढाने वाली 'माँ'...खुद जलती धूप सहती लेकिन अपने बच्चे के सर पर अपना आचल रख देती 'माँ'... खाना कम पड़ने पर भले ही खुद न खाए लेकिन बच्चों को पहले खाना खिलाती 'माँ', अपने बच्चों की बड़ी से बड़ी गलतियों पर उन्हें माफ़ कर देने वाली माँ और एक ऐसी शख्शियत जो अगर न हो तो सम्पूर्ण मानव जाति का अस्तित्व ही न हो...
किसी भी इंसान की ज़िंदगी को ज़िंदगी बनाने में माँ का अहम योगदान होता है... हमारा पहला कदम, हमारे मुहं से निकला पहला शब्द या हमारी ज़िंदगी का हर पहला काम सब माँ माँ की बदौलत है...ज़िंदगी में हमारी सबसे अच्छी टीचर माँ... जो हमे कभी निराश नही होने देती... हमारे हर फैसले में साथ खड़ी रहती है...हमारे लिए दुनिया से लडती माँ...कई जन्म लेकर भी हममे से कोई माँ का कर्ज नही उतार सकता... आप ज़िंदगी में कुछ भी कर लीजिये, कितने बड़े आदमी बन जाइये लेकिन माँ के आचल की छाव के बैगेर सब अधूरा है... छोटी सी चोट लगने पर भी हमे सबसे पहले माँ ही ही याद आती है...जब भी दुःख से घिर जातें है तो माँ याद आती है... जब भी भूखे रह जाते हैं तो माँ याद आती है... एक अलौकिक सुख की अनुभूति है 'माँ'...सच में अगर पृथ्वी पर ईश्वर मौजूद है तो वो माँ ही है... कोई भी कितनी भी कोशिश करले परन्तु 'माँ' को शब्दों में नही बांध सकता...
कल मदर्स डे है... 'माँ' के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का दिन...वैसे तो इस दिन की ड्राइविंग सीट पर भी बाज़ार ही बैठा है...इस दिन गिफ्ट शॉप वालों के असली मज़े आ जाते है...सब मंहगे से महंगा गिफ्ट खरीदने की होड़ में रहते हैं...हम भी उस एक दिन माँ को थेंक्यू बोलते हैं और गिफ्ट देते है, उस दिन उनको खुश रखते हैं...इमोशनल भी हो जाते है और समझते है की बन गया मदर्स डे...लेकिन ईमानदारी से अपने से पूछियेगा की बाकी के 364 दिन हम अपनी माँ के लिए क्या करते हैं??? क्या बाकी दिन उन्हें खुश रखने के लिए कुछ स्पेशल करतें हैं?? वैसे तो अगर हम रोज भी मदर्स डे मनाये तो भी हम 'माँ' का कर्ज अदा नहीं कर सकते...वैसे भी माँ को आपके महंगे गिफ्ट नही चाहिए...वो तो आपकी ख़ुशी देखकर भी खुश हो जाती है...लेकिन अगर आप कुछ करना भी चाहतें है तो बस इतना कीजिये की 'माँ' को वो सम्मान, वो ख़ुशी दीजिये जिसकी वो हकदार है...इतना ही काफी है... कई लोग खास तौर पर नौजवान माँ को ख़ुशी देना तो दूर उनसे सही ढंग से बात तक नहीं करते...आजकल के बच्चों के पास तो अपनी माँ से बात करने का टाइम भी नहीं है...लेकिन उनके पास शोशल साईटों पर वर्चुअल दोस्तों से बात करने का खूब टाइम है...जब भी माँ कुछ कहती है तो आजकल के बच्चे बोलते है- 'अब मैं बच्चा नही रहा जो हर चीज़ बताती रहती हो तो'...लेकिन माँ के हृदय का प्यार आपके प्रति उसकी चिंता को हम नही देख पाते...सच में अगर आपको माँ के प्रति कृतज्ञता जतानी है या उन्हें दिल से थेंक्यू बोलना है तो माँ से रोज कुछ देर तक अच्छे से बात करिए, अपनी वयस्त ज़िंदगी में से उनके लिए कुछ समय माँ के लिए भी निकालें तो उन्हें भी अच्छा लगेगा...ओर माँ के लिए हर दिन मदर्स डे होगा...वैसे कुछ न भी करें तो वो आपको देखकर भी खुश हो जाएगी...क्यूकी माँ तो माँ होती है...
Monday, May 7, 2012
नन्ही सी चिड़िया, अंगना में फिर आजा रे....
ओ री चीरैया, नन्ही सी चिड़िया,
अंगना में फिर आजा रे....
स्वानंद कि लिखी ये पंक्तियाँ दिमाग में उथल उथल मचा गयी...लिखने पर मजबूर कर दिया...काफी दिनों से आमिर खान के शो “सत्यमेव जयते” को लेकर हो हल्ला मचा हुआ था... प्रोमोज, टाइटल सोंग और इस पर मीडिया में अलग अलग बातें...जो मन में एक सस्पेंस बनाये हुए थे... प्रोमो में आमिर खान को दुष्यंत कुमार कि पंक्तियाँ बोलते सुना कि “सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही”...लगा कि कुछ तो बात होगी...लेकिन मन में सवाल उठ रहे थे कि शो में क्या होगा, शो किस विषय पर होगा वैगेहरा-वैगेहरा... लेकिन रविवार सुबह ११ बजे और ये इंतज़ार खत्म हुआ..
वैसे सुबह उठते ही टीवी देखने कि बीमारी कम ही लोगों को होती है.. लेकिन इस शो के प्रोमो और नाम ने सुबह इस प्रोग्राम को देखने के लिए काफी लोगों को मजबूर कर दिया...लो भाई दुनिया जहाँ के लो बैठ गये ये पोग्राम देखने... इस एपिसोड का विषय था ‘कन्या भ्रूण हत्या’...एक ऐसी बीमारी जो हर तबके में पायी जाती है... गरीब-अमीर, पढेलिखे-अनपढ़ सब में...सबको लड़का चाहिए...नही तो वंश कैसे बढ़ेगा...हम भला कब से ये निर्णय लेने लगे कि एक बच्ची जो अभी गर्भ में ही है वो इस दुनिया में आएगी भी कि नही...न जाने वो लोग(हैवान) कैसे होंगे जो गर्भ में या पैदा होने के बाद एक नन्ही सी जान कि हत्या कर देते है? उनकी नज़र कभी शर्म से झुकती होगी कि नही...पता नहीं?? ये ऐसा जघन्य अपराध जिसकी सजा जितनी हो वो कम ही है...
ज्यादातर शहरी लोगों को लगता है कि कन्या भ्रूण हत्या गावों में ज्यादा होती है और अनपढ़ या कम पढेलिखे लोग इस तरह का कुकृत्य करतें है...लेकिन आकड़े बताते है कि पढ़े लिखे और शहरों में बेटी को पैदा होने से पहले मार देने वाले लोगों कि तादात ज्यादा है...इस शो के माध्यम से हमारे समाज और ख़ास तौर पर तथाकथित आधुनिक और पढेलिखे लोगों का काला चहरा सामने आया है...ऐसा नही है कि इस विषय पर पहले कोई कार्यक्रम नही आया या ये आकड़े लोगों को पता नही थे... फर्क सिर्फ इतना है कि आमिर खान कि वजह से ये ज्यादा से ज्यादा लोगों तक ये आकड़े और ये कड़वी सच्चाई पहुची... ये अपनेआप में पहला ऐसा कार्यक्रम है जो किसी कामर्शियल चैनल के अलावा दूरदर्शन के राष्ट्रिय चैनल पर भी प्रसारित हो रहा है...जिससे ये शो ऐसे सुदूर इलाकों तक भी पहुच सकता है जहाँ तक कामर्शियल चैनल कि पहुच नही है...ऐसे में इस शो से इन मुद्दों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुचाया जा सकता है... हो सकता है कि कुछ लोग इसके माध्यम से ये जिम्मा उठायें कि वो अपने आसपास जन्म से पहले नन्ही परियों का क़त्ल नही होने देंगे...
शो के शुरू होते ही इसको लेकर नकारात्मकता का बाज़ार भी गर्म है...लोग कह रहे है कि आमिर अपनी पब्लिसिटी ज्यादा कर रहें है...तो कुछ का कहना है कि ये समस्या ज्यादा बड़ी है इस शो से कुछ नही होने वाला...लेकिन अरे भाई हाथ पर हाथ धरे बैठने से तो अच्छा है कि कम से कम आवाज़ तो उठाई जाये...क्या पता आपकी आवज़ कि गूंज उन हत्यारों के कान में भी पड़ जाये जो इस तरह के अपराध को अंजाम देतें है...और शायद हो सकता है कि उनमें कुछ ये अपराध न भी करें... लेकिन यथास्थितिवादी लोगों को ये सोचना चाहिए कि पहल छोटी ही सही लेकिन पहल ज़रुरी है...कुछ न करने से भी कुछ नही होगा...
कहीं ऐसा न हो कि जब बेटियां, माँ, बहने या पत्नी हर वो रिश्ता जो एक स्त्री से जुडा होता है उस रिश्ते कि छाव के लिए हम तरस न जाएँ...समाज में बेटियों का अकाल न पड़ जाये... इसलिए हम सबको मिलकर हर उस नन्ही चिड़िया को बचाने कि कोशिश करनी होगी जो हमारे बीच में रह रहे दरिंदों के निशाने पर हो...नही तो सच में हममे और हैवानों में कोई अंतर नही रह जायेगा...
-हिमांशु डबराल
Thursday, April 26, 2012
किसी का बेटा ऐसे घर न लौटे...
बेटे के फ़ौज में भरती हो जाने की ख़ुशी में परिवार ने पूरे गाँव की दावत की थी| पूरे गाँव को सजाया गया था| फ़ीकी और पुरानी हो चुकी सजावट अब भी कंही-कंही धुंधली यादों की तरह बाकी थी| कच्ची सड़क पर धूल उड़ाते हुए, नीले रंग का ट्रक सुमित के गाँव की तरफ तेज़ी से आ रहा था..ट्रक से उड़ा धूल का गुबार, बवंडर की शक्ल इख्तियार कर चुका था. गाँव में पसरा सन्नाटा, होने वाली अनहोनी का संकेत भर था| आगे का रास्ता सकरा होने की वजह से, ट्रक आगे नहीं जा सका,सो अब उन्हें पैदल ही जाना होगा| ये ट्रक CRPF का था| ट्रक वहीँ रुका रहा लेकिन ट्रक से नीचे कोई नहीं उतरा| फौजी गाड़ी को देख कर गाँव में अफरा-तफरी मच गई | थोड़ी ही देर में ट्रक को चारो तरफ से भीड़ ने घेर लिया| गांववाले उचक-उचक कर ट्रक के अन्दर देखने की कोशिश कर रहे थे| ट्रक में चार जवान थे और एक काले रंग का बक्सा था. बक्से पर सफ़ेद रंग से सुमित पाटिल और फ़ोर्स नंबर लिखा हुआ था. सुमित का सामान तो था लेकिन सुमित नहीं था. धूल के गुबार को चीरती हुई सफ़ेद रंग की अम्बुलेंस भी कुछ ही देर में ठीक ट्रक के पीछे आ खड़ी हुई . अम्बुलेंस में भी सुमित नहीं था. C.R.P.F. के जवानों के गाँव में आने की खबर सुन कर सुमित के पिता अरविन्द दौड़े चले आये और आते ही पूछा "मेरा बेटा ठीक तो है". उन्हें ये खबर मिल चुकी थी कि "नक्सलियों ने C.R.P.F. के जवानों पर गढ़चिरौली में हमला किया है" उन दिनों सुमित भी वही तैनात था . जवानों के साथ आए अफसर ने सुमित के पिता को जवाब दिया "फ़ौज को आपके बेटे पर गर्व है, वो बहुत बहादुर था, सुमित मरा नहीं शहीद हुआ है. ये जवाब किसी भी पिता को जीवन भर के लिए मूक कर देने को काफी था. अरविन्द जी कुछ न बोल सके, सिर्फ आँखों से आंसुओं का सैलाब फूट पड़ा. वो शायद चीख-चीख कर रोना चाहते होंगे लेकिन कैसे रोते, उनका सब कुछ लुट चुका था. बाप के काँधे पर जवान बेटे की लाश से ज्यादा भारी बोझ इस संसार में भला क्या हो सकता था. सैकड़ो लोगों की भीड़ तिरंगे में लिपटे सुमित को देखना चाह रही थी. चार जवान सुमित के शव को कांधे पर लिए हुए भीड़ के बीच से होते हुए सुमित के घर की तरफ बढ़ रहे थे. भीड़ शांत थी, कोई कुछ नहीं बोल रहा था. सुमित की माँ को इस बात का अंदेशा हो गया था की कोई अनहोनी घटी है. लेकिन एक माँ कैसे सोच लेती की उसका बेटा इस दुनिया में अब नहीं रहा. जैसे ही सुमित का शव जवानों ने कांधे से उस आंगन में रखा गया जहाँ सुमित ने कभी चलना सीखा होगा, अरविन्द जी बोले देख तेरा "बेटा लौट आया है". माँ दौड़ी-दौड़ी आई और तिरंगे से लिपटे ताबूत को पीट-पीट कर रोने लगी. ताबूत खोला गया तो कई आंखे सहम गई. सुमित का शरीर टुकडो में था, जैसे फटे पुराने कपड़ो को बेतरतीब रख कर सिल दिया गया हो. बारूदी सुरंग धमाके में सुमित के साथ ११ और जवानों की भी मौत हुई. मांस के चिथड़ो से गुथी सुमित की लाश तो भी काफी अच्छी हालत में थी जो घर तक पहुँच सकी. क्या हर बेटा ऐसे ही घर लौटता है? ये सवाल उन जवानों के माता-पिता के ज़हन में कई बार आता होगा जिनके बेटे ऐसे शहीद हो जाते हैं...
हमारे देश में नक्सलवाद एक गंभीर समस्या है नक्सली हमले नासूर बनते जा र
-आज़म खान
(Azam khan)