Tuesday, October 19, 2010

मेरे साथ हो तुम...

किसी खास के जाने के बाद भी उसके होने का एहसास हमेशा रहता है...लगता है जैसे वो यही हमारे पास है...उसी एहसास को शब्दों में पिरोने की मेरी कोशिश-

दिल का हंसी एहसास हो तुम

शायद मेरे पास हो तुम...

तन्हाईयों में अक्सर तुम्हे ढूँढता हूँ

हजारों में भी तुम्हें ढूँढता हूँ...

अँधेरों में, उजालों में, ज़िंदगी के ख़्यालों में

मेरे आफ़ताब हो तुम...

शायद मेरे पास हो तुम...

जब भी आँखें भर आती हैं

हर पल मुझे सताती हैं

कभी छलक भी जाती हैं...

आँखों के सैलाब में ही सही, मेरे साथ हो तुम

शायद मेरे पास हो तुम...

तुम दूर जितना जाते रहे, उतना ही करीब आते रहे

दिल के किसी कोने में, जख़्म बन मुस्कुराते रहे...

जख़्मों की ही सही, एक सौगात होती है

शायद मेरे पास हो तुम...

ख़्वाबों में ज़िंदगी हो, ज़िंदगी में ख़्वाब हो तुम

राहों में मंज़िल हो, और मंज़िल में राह हो तुम

राह-ए-मंज़िल में, ठोकर बनकर ही सही

हाँ...मेरे साथ हो तुम...

-हिमांशु डबराल

Wednesday, October 6, 2010

बदतर है...


क्या मंदिर है, क्या मज्जिद है,
दोनों एहसासों के घर है...

आखें बंद रखो तो शब्,
वरना हर वक्त सहर है...

मज़हब के नाम पर खूं बहाने वालों,
तुम्हारे सीने में दिल नही, पत्थर है...

उसे दिल में यूँ न बसा मेरे दोस्त,
उसके हाथ में गुल नही, नश्तर है...

ये सियासत जन्नत को जहन्नुम बनाकर छोड़ेंगी,
क्या गजब है नौजवानों के हाथो में किताबें नही, पत्थर है...


अब तो जागो हिंदोस्ता वालों,
मुल्क की हालत बद से बदतर है...

-हिमाँशु डबराल himanshu dabral

Friday, October 1, 2010

असुविधा के लिए खेद भी नही है...

अब बैंक में नही परचून की दुकान पर पैसे जमा करने पड़ेंगे...हैं न आजीब...घबराइए नहीं ये असुविधा सिर्फ स्टेट बैंक के खता धारको के लिए है...बस जेब संभल कर जाइयेगा, चूँकि वहां न गार्ड है और न ही दरवाजे...आज सुबह नॉएडा में सेक्टर 26 के एसबीआई में कुछ पैसे जमा कराने गया...वहा से मुझे सेक्टर 19 के एसबीआई ये कह कर बेझ दिया गया की हम दूसरी ब्रांच के खाते का कैश नही जमा करते...लेकिन सेक्टर 19 के एसबीआई में नयी जानकारी मिली की एसबीआई ने एको(EKO) नाम के नए सेंटर खोले है आप वहां जाइये वही कैश जमा होगा...मैं उस सेंटर को लगभग आधे घंटे ढूढता रहा...बड़ी देर बाद बहुत पूछने पर एक दुकान मिली जिसके ऊपर एसबीआई एको(EKO) लिखा था...आगे गया तों लाइन लगी थी, एक गन्दी सी फोटोकॉपी की गयी स्लिप मिली जिसे भरने को कहा गया...सब फर्जी सा लग रहा था, मैने अपनी तसल्ली के लिए एसबीआई के कॉल सेंटर में फ़ोन किया, पता चला नई सुविधा है, जिसके लिए इन दुकानदारों को ट्रेनिंग भी दी गयी है...मेरे तो ये समझ में नही आया की ये सुविधा है या असुविधा?? कोई भी व्यक्ति पैसे जमा कराने के लिए अब बैंक नही बल्कि किसी गली महोल्ले की दुकान पर जाये...और लाइन में भी लगे...आगे बढा तो वहां नंबर भी मिल रहे थे...17 न.चल रहा था मेरा न. 41 था...काफी देर बाद भी न. नही आया...जो पैसे ले रहा था उससे मैने पूछा की कितना समय लगेगा??? उसने कहा की आधा पौन घंटा लगेगा तब तक चाय सिगरेट पी आओ...एक आदमी जिसका न. था वो उससे कह रहा था की जल्दी पैसे लो...उसने पास कड़ी महिला की ओर इशारा करते हुए कहा की जरा दूध दे दू बहन जी को फिर पैसे लेता हुं...काफी देर वहां खड़ा रहा और परेशां होकर वापस सेक्टर 26 के एसबीआई गया, एसबीआई के कर्मचारियों को भी एको के बारे में पता नही था, वें एक दुसरे से पूछ रहे थे....तभी उनमे से एक कर्मचारी ने सबको बताया की हाँ ऐसा भी है...मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ की जब एसबीआई में काम करने वाले लोगों को इसके बारे में पता नही है तो फिर आम जनता को कैसे पता चलेगा, खैर मैं मेनेजर से मिलने चला गया...जब उन्हें मैने ये बताया तो उनके चेहरे को देख कर लग रहा था की उन्हें भी नही पता इस असुविधा के बारे में...लेकिन वे बोली की आप 15 मिनट बातें मैं आपको फिर बुलाती हुं...20 मिनट बाद वो आई और बोली की वैसे तो हम दूसरी ब्रांच के खाते में कैश जमा नही करते लेकिन आप यही जमा करा दीजिये, मैं बोल देती हुं... मैने उनसे कहा की मैं तो करा दूंगा लेकिन बाकि लोगो का क्या जो उन दुकानों में लाइन में बिना सुरक्षा खड़े हैं...अगर किसी के भी हाथ से वहां कोई चोर पैसा ले जाये तो उसकी जिम्मेदारी एसबीआई लेगा क्या???? उन्होंने कोई जवाब नही दिया...और मुझे बोला की आप इनसे मिलले आपके खाते में कैश जमा हो जायेगा...मैने कैश जमा कराया और मुफ्त में शिकायत और सुझाव दोनों दे कर चला आया...लेकिन का बैंक में और ''एको'' मेरा मतलब उस पंसारी की दुकान में कही भी ये तक नही लिखा था की असुविधा के लिए खेद है...खैर लिखित तौर पर शिकायत और सुझाव दोनों बेझ रहा हुं...देखते है क्या होता है...लेकिन एसबीआई वालों को इतनी बड़ी असुविधा देने के बाद भी असुविधा के लिए खेद भी नही है...

-हिमांशु डबराल himanshu dabral