आज पुरानी डायरी के कुछ पन्नो को पलटते हुए माँ पर लिखी मेरी एक कविता दिखी जो उस समय की है जब मैने कविता लिखना शुरू किया था...माँ के बारें में मेरे दिल से लिखी कुछ पंक्तियाँ-
मॉं मूरत है ममता की,
मॉं सूरत है समता की,
मॉं जग में है सबसे प्यारी,
बच्चो के दुख हरने वाली,
जीवन उजीयारा करने वाली,
सच मॉं मूरत है ममता की...
भूखी रहकर हमे खिलाए,
दुखी रहकर हमे हसाए,
खुद जाग वो हमे सुलाए,
सच मॉं मूरत है ममता की...
ठोकर जब तुम खाओगे,
दुख मे जब धिर जाओगे,
मॉ से ही सुख पाओगे,
सच मॉं मूरत है ममता की...
मॉं को न तुम कभी भूलाना,
मॉं को न तुम कभी सताना,
सुख से मॉं का जीवन भर दो,
मॉ नाम तुम रोशन कर दो
क्यूंकि सच है की, मॉं मूरत है ममता की...
-हिमांशु डबराल
himanshu dabral
Friday, July 16, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत सुन्दर ! 'माँ' शब्द ही काफी है किसी भी रचना के लिए ...
ReplyDeleteWah wah ...
ReplyDeleteYahi to hai maa ki asli surat. Baki indrajit ji ne to kuch kahne ko chhoda hi nahi