Saturday, July 3, 2010

रहता रहा...

मैं उन्हें कुछ न कहकर भी कुछ कहता रहा,
जिंदगी के ग़मों को यूँ ही हँस कर सहता रहा....
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रह न सकता था जिस खंडर में एक पल कभी,

मैं उसी को घर समझ के रहता रहा...

-हिमांशु डबराल

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