तीर्थ नगरी हरिद्वार में महाकुंभ चल रहा है। देश-विदेश से आऐ लाखों लोग इस महाकुंभ के साक्षी बनना चाहते हैं। गंगा तट पर आस्था का महासागर देखने को मिल रहा है। लेकिन ये कुंभ आस्था के महाकुंभ के साथ-साथ भिख़ारियों का महाकुंभ भी है। शायद आप चौंक गये होंगे…लेकिन यह सच है, दूर-दूर से भिखारी यहां आ रहे हैं। छोटे हो या बड़े गरीब हो या पैसे वाले सभी तरह के भिखारी आपको यहां मिल जाऐंगे।
मेरा परिवार हरिद्वार में ही रहता है, मैं दो दिन की छुट्टी पर घर गया हुआ था। घरवालों ने कहा कि कुंभ के समय आये हो, तो गंगा नहायाओ। मेरा तो यही जवाब था कि घर के नल में ही गंगा का पानी आता है, भई घर में ही गंगा नहा लेता हूं…'मन चंगा तो नल में गंगा’, लेकिन धार्मिक मान्यता भी तो हैं, इसलिए सुबह उठकर गंगा नहाने चल दिये।
घर से हरि की पौड़ी के रास्ते में मैंने लगभग 100 से 200 भिखारियों को देखा। मैं एक मंदिर के पास से गुज़र रहा था, तो 15-20 भिखारी उसके बाहर बैठे थे। जिनमें हर उम्र के भिखारी थे। उनमें एक छोटा बच्चा भी था, जिसकी उम्र लगभग 9-10 साल के बीच रही होगी, उसने आशा भरी निगाहों से मुझे देखा, जैसे ही मैंने उसकी ओर देखा, उसने पैसे मांगने शुरू कर दिए, 5रू. दे दो, 5रू. दे दो…। उसकी मांग सुनकर मुझे लगा वाकई मंहगाई बहुत बढ़ गयी है, तभी वो 1रू. की जगह 5रू. मांग रहा है। तब मैंने उससे पूछा कि 5रू. का क्या करेगा? वह बोला कि, ‘चाय पीनी है।’ मैंने उसे चाय पिलाई और आगे बढ़ गया। थोड़ा आगे बढ़ने पर मेरी नज़र एक बुजुर्ग पर पड़ी, जो गंगा तट पर अपने फटें-पूराने पतले कम्बल के सहारे ठंड से बचने की जद्दोज़हद् में लगे थे। मैं उनके पास गया और उनसे बोला, कि मुझे आपकी कुछ तस्वीर खींचनी है। उन्होंने हामी भरी और मैंने पत्रकारिता की पढ़ाई में सिखाए गए सभी एंगलों से उनकी तस्वीर खींची और जाने लगा, तभी उन्होंने 10रू. की मांग की। मैंने उनसे पूछा कि बाबा 10रू. का क्या करोगे? उन्होंने बताया कि, ‘बेटा खाना खाऊंगा।’ मैं फिर चौंका कि 5 मिनट में मंहगाई इतनी कम कैसे हो गई कि 10रू में खाना मिल रहा है। पता चला कि पास की ठेली में 10रू में दो पराठे मिलते हैं। बाबा को मैंने पराठे दिए और चल दिया। बस मन में यह सोच रहा था कि इतने भिखारी और मज़लूम लोग हरिद्वार में कहां से आ गए।
एक भिखारी ने बताया कि कुंभ के धंधे का गोल्डन पिरीयड है। उससे बातचीत करने पर लग रहा था, कि वह पढ़ा-लिखा है। उसने बताया कि वह एम.ए. पास है, उसका अपना घर भी है। मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि इतना सब कुछ होने के बावजूद वह भीख क्यों मांग रहा है? पूछने पर उसने बताया कि इस धंधे में ज्यादा फ़ायदा है और मेहनत भी कम करनी पड़ती है। उसने यह भी बताया कि उसके कई भिखारी मित्र हैं, जो पढ़े-लिखे हैं और दूर-दूर से ऐसे समय पर हरिद्वार आते हैं। मै भी मन में सोच रहा था कि ‘धन्धा तो अच्छा है।’
खैर मैं आगे बढ़ा और गंगा तट पर गया। वहां पंडित ही पंडित नज़र आए जो रूपयों के हिसाब से पूजा के प्रकार लोगों को बता रहे थे। बाज़ारीकरण और मंहगाई का असर इन पर भी खासा देखने को मिला। मैंने एक सज्जन से पूछा, कि पंडित जी डुबकी लगाने का तो पैसा नहीं लेंगे? उनके आश्वासन के बाद मैंने डुबकी लगाई, पानी काफी ठंडा था। मैं तुरंत बाहर आया और जय गंगा मैया बोल, कपड़े पहनकर जाने लगा, तभी थोड़ी दूर पर मेरी नज़र दो बच्चो पर गई, जो पानी में बार-बार डुबकी लगा रहे थे। उनमें से एक, हाथ में थैली लिये पानी के बाहर बैठा था और दूसरा पानी से कुछ निकालकर उस थैली में डाल रहा था, पास गया तो देखा कि वो पानी से सिक्के निकाल रहे थे। पूछा कि ‘ये क्या है?’ तो वह बोला, ये वही सिक्के हैं जो आप लोग गंगा जी में डालते है। उनकी मासूम निगाहें यही सवाल कर रही थी कि क्या ये सिक्के ऐसे ही नहीं मिल सकते? तभी उनमेसे दूसरा लड़का बोला क्या ये नदी इन सिक्कों से अपना पेट भरती है? लेकिन हम इन सिक्कों से अपना और अपने परिवार का पेट भरते हैं…
उन बच्चों की स्थिति देखकर ज़हन् में यही कश्मकश चल रही थी कि ये देश के भविष्य किस तरह आगे बढ़ेंगे? बेबसी की डुबकी लगाता उनका बचपन हमसे और इस समाज से पूछ रहा था कि ‘करोड़ो-अरबों’ के इस महाकुंभ में कुछ ऐसा नहीं हो सकता कि चंद सिक्कों के लिए हमें गंगा की इस ठंड से लड़ना ना पड़े?
उसके बाद मैं कई भिखारियों से मिला और बातचीत की। उनमें से कुछ वास्तव में परिस्थितियों के हाथों मजबूर थे और कुछ केवल कमाई मात्र के लिए भीख मांग रहे थे। इस सब को देखकर आस्था का ये महाकुंभ भिखारियों का महाकुंभ ही नज़र आ रहा था। बांकि आपके ऊपर है कि आप इसे क्या समझते हैं?
-हिमांशु डबराल
एक भिखारी ने बताया कि कुंभ के धंधे का गोल्डन पिरीयड है। उससे बातचीत करने पर लग रहा था, कि वह पढ़ा-लिखा है। उसने बताया कि वह एम.ए. पास है, उसका अपना घर भी है। मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि इतना सब कुछ होने के बावजूद वह भीख क्यों मांग रहा है? पूछने पर उसने बताया कि इस धंधे में ज्यादा फ़ायदा है और मेहनत भी कम करनी पड़ती है। उसने यह भी बताया कि उसके कई भिखारी मित्र हैं, जो पढ़े-लिखे हैं और दूर-दूर से ऐसे समय पर हरिद्वार आते हैं। मै भी मन में सोच रहा था कि ‘धन्धा तो अच्छा है।’
खैर मैं आगे बढ़ा और गंगा तट पर गया। वहां पंडित ही पंडित नज़र आए जो रूपयों के हिसाब से पूजा के प्रकार लोगों को बता रहे थे। बाज़ारीकरण और मंहगाई का असर इन पर भी खासा देखने को मिला। मैंने एक सज्जन से पूछा, कि पंडित जी डुबकी लगाने का तो पैसा नहीं लेंगे? उनके आश्वासन के बाद मैंने डुबकी लगाई, पानी काफी ठंडा था। मैं तुरंत बाहर आया और जय गंगा मैया बोल, कपड़े पहनकर जाने लगा, तभी थोड़ी दूर पर मेरी नज़र दो बच्चो पर गई, जो पानी में बार-बार डुबकी लगा रहे थे। उनमें से एक, हाथ में थैली लिये पानी के बाहर बैठा था और दूसरा पानी से कुछ निकालकर उस थैली में डाल रहा था, पास गया तो देखा कि वो पानी से सिक्के निकाल रहे थे। पूछा कि ‘ये क्या है?’ तो वह बोला, ये वही सिक्के हैं जो आप लोग गंगा जी में डालते है। उनकी मासूम निगाहें यही सवाल कर रही थी कि क्या ये सिक्के ऐसे ही नहीं मिल सकते? तभी उनमेसे दूसरा लड़का बोला क्या ये नदी इन सिक्कों से अपना पेट भरती है? लेकिन हम इन सिक्कों से अपना और अपने परिवार का पेट भरते हैं…
उन बच्चों की स्थिति देखकर ज़हन् में यही कश्मकश चल रही थी कि ये देश के भविष्य किस तरह आगे बढ़ेंगे? बेबसी की डुबकी लगाता उनका बचपन हमसे और इस समाज से पूछ रहा था कि ‘करोड़ो-अरबों’ के इस महाकुंभ में कुछ ऐसा नहीं हो सकता कि चंद सिक्कों के लिए हमें गंगा की इस ठंड से लड़ना ना पड़े?
उसके बाद मैं कई भिखारियों से मिला और बातचीत की। उनमें से कुछ वास्तव में परिस्थितियों के हाथों मजबूर थे और कुछ केवल कमाई मात्र के लिए भीख मांग रहे थे। इस सब को देखकर आस्था का ये महाकुंभ भिखारियों का महाकुंभ ही नज़र आ रहा था। बांकि आपके ऊपर है कि आप इसे क्या समझते हैं?
-हिमांशु डबराल
himanshu dabral
humare desh me ton har shaher me bhikariyon ka khumbh laga rhata hai...
ReplyDeletebahut achcha lekh likha hai apne...
shi hai janab...
ReplyDeletekya soch hai apki....bahut khub..
ReplyDeleteवाह सर, बहुत सुंदर... कुम्भ को आपने इस नज़रिए से भी देखा ... ये अच्छा लगा | कथ्य और कथन दोनों बेजोड़ हैं | रोचक लेख | बधाई ...|
ReplyDeletesach me khumbh me bahut bhikari the...mai khud paise de de ke pareshan ho gaya...
ReplyDeletebahut achcha lekh..