जिंदगी में, बंदगी में, आरज़ू में, गुफ़्तगू में,
जो भी मिले वो अच्छा है...
बात में, साथ में, उपहास में या सौगात में,
जो भी मिले वो अच्छा है...
रंग में, संग में और ढंग में,
जो भी मिले वो...
रात में, बरसात में, हाथ में या मुलाकात में,
जो भी मिले वो...
अंधेरों में, उजालों में, चाय के दो प्यालो में
जो भी मिले वो अच्छा है...
बात में, साथ में, उपहास में या सौगात में,
जो भी मिले वो अच्छा है...
रंग में, संग में और ढंग में,
जो भी मिले वो...
रात में, बरसात में, हाथ में या मुलाकात में,
जो भी मिले वो...
अंधेरों में, उजालों में, चाय के दो प्यालो में
और घटा से उन बालों में,
जो भी मिले वो...
ठोकर में, ढ़ोकर में और जोकर में,जो भी मिले वो...
प्यार में, इजहार में, तकरार में और इस संसार में,
जो भी मिले वो...
गीत में, रीत में, प्रीत में, मीत में या जीत में,
जो भी मिले वो...
सागर में, सहरा में, तेरा में या मेरा में,
जो भी मिले वो...
जो भी मिले वो...
ठोकर में, ढ़ोकर में और जोकर में,जो भी मिले वो...
प्यार में, इजहार में, तकरार में और इस संसार में,
जो भी मिले वो...
गीत में, रीत में, प्रीत में, मीत में या जीत में,
जो भी मिले वो...
सागर में, सहरा में, तेरा में या मेरा में,
जो भी मिले वो...
खेल में, मेल में, जेल में और सेल में,
जो भी मिले वो...
जो भी मिले वो...
-हिमांशु डबराल
himanshu dabral
sach me jo mile achha hain
ReplyDeletebahut hi sakaratmak kavita hai...zindgi me jo bhi jaise bhi mile wo achcha hai....bahut khub..
ReplyDeletebahut thik likha hai
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा अपने ,दिल को छु गयी कविता कुछ जोड़ने का सहस कर रही हूँ .
ReplyDeleteजिन्दगी कि डगर में जो भी मिला ,
वो अच्छा है .
फूलों कि तलाश में काटों से दामन भरा ,
वो अच्छा है .
मागा था जिन्दगी का एक कतरा खुदा से ,
वो भी न मिला
तो अच्छा है .
लहरें टकरा के कई बार लौट गयी
मझको साहिल न मिला तो ,
वो भी अच्छा है .