वो तो नदी है, उसे सबसे प्यार है.… लेकिन वो किसी बंधन में नहीं बंधना चाहती… न उसे उस झरने का प्यार रोक पता है जो ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से कूदकर मिठास लिए उसके पास आता है… सागर की चाहत तो उसे भाती है लेकिन उसके खारेपन से उसे चिढ भी है इसीलिए उसतक पहुँचने से पहले ही वो कहीं खो जाती है... उसे तो शायद बारिश की उन बूंदों से प्यार है जो कभी-कभी बरसती हैं लेकिन जब मिलती हैं तरंगित कर जाती हैं, बिना किसी बंधन के, बिना किसी आस के.…
Saturday, August 29, 2015
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