Sunday, September 6, 2015

शिक्षक नहीं शिष्य कहिये...

आज सुबह से शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं मिल रही है... कुछ लोगों के फोन आये, चिठ्ठी भी मिली और मेसेज भी...सबने अपने ढंग से शिक्षक दिवस की बधाई दी... लेकिन कुछ लोगों से बात करके मैं भावुकता के समंदर में गोते लगा आया...ऐसा कभी लगा नहीं की कुछ अलग किया है जीवन में... लेकिन आज शिक्षक शब्द के अपने साथ जुड़ने भर से ही अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ...
जब दिल्ली आया तो ये भी नहीं सोचा था की यहाँ कुछ कर भी पाउँगा... इतनी तेज़ रफ़्तार और आपाधापी से भरी दिल्ली की चकाचौंध हमेशा डरा देती थी... लगता था की अपना यहाँ कुछ नहीं होने वाला...लेकिन इस जादुई शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया, खास तौर पर अच्छे शिक्षक, दोस्त, भाई, साथी और अँधेरे रास्तों पर टोर्च दिखाने वाले कुछ लोग... इतना प्यार मिला जिसकी उम्मीद भी नहीं की थी...  खैर किस्सा तब का है जब मैं कॉलेज में सीनियर बना, तब पता चला की अब बड़े हो गयें हैं... जूनियर्स में से कुछ भाई-बहन, दोस्त और शिक्षक भी मिले जिनके निश्छल प्रेम को देख कर लगा की ये लोग शायद कहीं दूसरी दुनिया से आये हैं....कुछ लोग अपना लिखा या किया मुझे हमेशा दिखाया करते और राय मांगते, उन्ही लोगों ने मुझे मजबूर किया की मैं कुछ सिखाऊं भी... आता तो कुछ नहीं था बस उनके चक्कर में पढ़के, किसी से पूछ कर या देख कर सिखा और फिर सिखाने की कोशिश की...  वहीँ से सिखने-सिखाने का बीजारोपण हुआ, जो आज जीवन का हिस्सा बन गया है...
फिर कॉलेज के बाद नौकरी शुरू हो गयी और सीखने का दायरा ऑफिस तक सिमट कर रह गया... बस मुलाकात, ब्लॉग और फोन ही माध्यम थे जिनसे मैं सबसे जुड़े रहने की कोशिश करता रहा...
फिर अचानक पढ़ाने का मौका मिला... यकीन मानिये पहली क्लास में बच्चे भी मुझे फैकल्टी मानने को तैयार नहीं थे और मैं तो खुद भी नहीं समझ पा रहा था की हो क्या रहा है... खैर काफी बाद में समझ आया की पढ़ाने का मतलब पढना होता है और जो आपसे पढ़ रहें हैं वो हकीकत में आपको पढ़ा रहें हैं...खैर पांच साल से ज्यादा हो गया है पढ़ाते(पढ़ते) हुए... आज भी मैं अपने को शिष्य की भूमिका में ही देखता हूँ...  हाँ शिक्षक कहलाना सौभाग्य की बात है लेकिन मुझे शिष्य शब्द से ज्यादा जुडाव है...

जो प्यार, लगाव, सम्मान और खास तौर पर शिक्षा मुझे मिल रही है वो अनमोल है... आज शिक्षक दिवस के मौके पर उन सभी छात्रों को मेरा ढेर सारा लाड और आश्रीवाद जिन्होंने किसी न किसी रूप में प्यार, भावनाएं, सकारात्मकता, प्रेरणा और उर्जा का संचार मेरे जीवन में बरक़रार रखा है... आप सभी के साथ बिताये एक-एक लम्हे से मैंने बहुत कुछ सिखा है...वो कहानी, वो गाने, वो लम्हे जिनमे मैं भरपूर जिया उन सभी में आपका हिस्सा है... शायद मैं आप सभी से अलग से कह न पाऊं की- मेरे जीवन में आगे बढ़ने, नया सीखने और कुछ अच्छा करने की प्रेरणा के पीछे आप सभी का अहम योगदान है... सच बताऊँ तो पढ़ाना जीवन का सबसे सुखद एहसास रहा है और रहेगा भी...
आप सभी के स्नेह के  सामने शुक्रिया शब्द बहुत छोटा है...
हकीकत में एक गुरु तभी गुरु है जब उसके शिष्य अच्छे हों... आप लोगों को कुछ अच्छा करते देख मेरा दिल खुश हो जाता है,  छाती गर्व से फूल जाती है...

बहुत सी बातें हैं जो अनकही रह गयी लेकिन ''Dont mind haan''

For all my dear students cum teachers.





Saturday, August 29, 2015

वो तो नदी है, उसे सबसे प्यार है.… लेकिन वो किसी बंधन में नहीं बंधना चाहती… न उसे उस झरने का प्यार रोक पता है जो ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से कूदकर मिठास लिए उसके पास आता है… सागर की चाहत तो उसे भाती है लेकिन उसके खारेपन से उसे चिढ भी है इसीलिए उसतक पहुँचने से  पहले ही वो कहीं खो जाती है...  उसे तो शायद बारिश की उन बूंदों से प्यार है जो कभी-कभी बरसती हैं लेकिन जब मिलती हैं तरंगित कर जाती हैं, बिना किसी बंधन के, बिना किसी आस के.… 

Saturday, August 1, 2015

तुम जीना सिखा गयी...

अरसे बाद उँगलियों ने किसी एहसास को लिखने की कोशिश की है
पता नहीं क्यों ये कतराती थी कुछ लिखने से 
शायद कहीं सच न लिख दें 
शायद यही वजह रही होगी....

सोचा की तुम्हे लिखके भेज दूँ वो सारे सवाल
मांगूं जवाब की क्यों गयी तुम
कुरेद दूँ उन धूल खायी परतों को
सह लूँ एक बार उस दर्द को 
एक आखरी बार 

सच बताऊँ तो हिम्मत नहीं जुटा पता हूँ 
बस सोचके ही रह जाता हूँ 
पता नहीं क्यों बार-बार रोक लेता हूँ उस सैलाब को 
क्यों नहीं ज़ाहिर होने देता हूँ उस गुस्से को
शायद तुम्हारी वो मुस्कान मुझे रोक लेती है 
जिसके लिए मैं अपने को भी हारने को तैयार था 

किसी के होते हुए भी न होने का ख्याल भी कितना डरावना है 
लेकिन इस हकीकत से साथ जीना मरने से भी मुश्किल काम है 
हाँ हाँ मैंने ही कहा था की मारना बहुत आसान है 
पर तुम तो जीना सिखा गयी...

 -हिमांशु डबराल

himanshu dabral