Monday, May 12, 2014

रहता रहा...

मैं उन्हें कुछ न कहकर भी कुछ कहता रहा,
जिंदगी के ग़मों को यूँ ही हँसकर सहता रहा....

रह न सकता था जिस खंडर में एक पल कभी,
मैं उसी को घर समझ के रहता रहा.

-हिमांशु डबराल

1 comment: