मैं उन्हें कुछ न कहकर भी कुछ कहता रहा,
जिंदगी के ग़मों को यूँ ही हँसकर सहता रहा....
रह न सकता था जिस खंडर में एक पल कभी,
रह न सकता था जिस खंडर में एक पल कभी,
मैं उसी को घर समझ के रहता रहा.
-हिमांशु डबराल
तुझमे सुनने की तासीर नहीं तो कान बंद रख हमे तो बेबाक बोलने की आदत है ....!!!
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