मैं दौलत शोहरत न चाहूँ,
ये झूठी रौनक न चाहूँ...
छोटा सा एक घरोंदा हो,
जहाँ फुर्सत के पलों को जी जाऊं...
मैं दौलत शोहरत न चाहूँ....
चोट मिले तों मुस्काऊं,
जब दर्द मिले तो मैं गाऊं...
मैं दौलत शोहरत न चाहूँ,..
आखों में बसूं न बसूं ,
दिल में तों मैं बस जाऊं...
मैं दौलत शोहरत न चाहूँ...
सड़कों पे उजालें हो न हो,
ज़हनों में अन्धेरें न चाहूँ...
मैं दौलत शोहरत न चाहूँ...
-हिमांशु डबराल himanshu dabral
Wednesday, November 10, 2010
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bahut khub himanshu bhai...
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