Wednesday, September 1, 2010

आग लगाने का मन करता है....

मीडिया की पढाई वाली दुकानों की भरमार हो गयी है...ऐसे में पत्रकार बनने के लिए सिर्फ जेबे गरम होनी चाहिए...लेकिन इस क्षेत्र में आने वाले नौजवानों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है...न शिक्षा का स्तर और न कुछ प्रेटिकल जानकारी...वहा तो सिर्फ पैसा बटोरने का काम होता है... इन दुकानों में इन्हें रंगीन सपने दिखाए जाते है और कोर्स पूरा होने पर सपनो की ये रंगीन दुनिया काली हो जाती है...पत्रकार बनना इतना आसन हो गया है की आजकल राह पे चलता हर चौथा आदमी अपने को पत्रकार बताता है...सब इन दुकानों के कारणहो रहा है... ऐसी दुकानों को चलाने वालो की दुकानों में आग लगाने का मन करता है....

-हिमांशु डबराल

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