Tuesday, August 10, 2010

आ जाए....

क्या पता ज़ंग लगी तलवार में धार आ जाये,
दिल के किसी कोने में फिर से बहार आ जाये...


बेवफाई की कालिक से मुहं ढक सा गया है उनका,
क्या पता वफाई से चेहरे पर कुछ निखार आ जाये...

हम दिल को इसी ख्याल में भटकते रहते हैं,
की शायद उनको मेरी याद आ जाए...

क्या होगा न मैं जानु, न खुदा जाने,
क्या हो जब सामने मेरे तू, रकीब के साथ आ जाए...

-हिमांशु डबराल himanshu dabral

3 comments:

  1. Kya baat hai dabral sahab...

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  3. मैकदे से निकल रोज ही टकराता बुतक़दे से ,
    के खुदा के दर पे नज़र खुदा ए यार आ जाये

    shyam

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