क्या पता ज़ंग लगी तलवार में धार आ जाये,
दिल के किसी कोने में फिर से बहार आ जाये...
बेवफाई की कालिक से मुहं ढक सा गया है उनका,
क्या पता वफाई से चेहरे पर कुछ निखार आ जाये...
हम दिल को इसी ख्याल में भटकते रहते हैं,
की शायद उनको मेरी याद आ जाए...
क्या होगा न मैं जानु, न खुदा जाने,
क्या हो जब सामने मेरे तू, रकीब के साथ आ जाए...
-हिमांशु डबराल himanshu dabral
Tuesday, August 10, 2010
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Kya baat hai dabral sahab...
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ReplyDeleteमैकदे से निकल रोज ही टकराता बुतक़दे से ,
ReplyDeleteके खुदा के दर पे नज़र खुदा ए यार आ जाये
shyam