Friday, February 12, 2010

सजा बन जाओ तुम...


दिल के रंजो-ग़म की दवा बन जाओ तुम,
या दिल के ज़ख्मो को जो दे सुकूं, एक बार ऐसी हवा बन जाओ तुम...

इस कदर चाहा है तुमको रात-दिन,
मेरी रूह में बसकर, मेरे ख़ुदा बन जाओ तुम...

कभी ख्वाबों में, यादों में क्यों आते हो तुम,
आना है तो, मेरी यादों का काफिला बन जाओ तुम...

जाने से तेरे, रुक सा गया है सब कुछ,
जो थम गया है, वो सिलसिला बन जाओ तुम...

हो सके तो एक बार फिर चाहो मुझे इतना,
दुनिया के लिए महोब्बत की, इन्तहां बन जाओ तुम...

तेरे आने की उम्मीद में कब से बैठे है हम,
ख़त्म करदे जो मेरी आस, ऐसा ज़लज़ला बन जाओ तुम...
.
कुछ ऐसा करो मेरे एहसासों के साथ,
रोते-रोते हँसने की अदा बन जाओ तुम...

तोड़ना है तो मेरे दिल को इस कदर तोड़ो,
मेरी वफ़ाओ की सजा बन जाओ तुम...


-हिमांशु डबराल

4 comments:

  1. कहते हैं जिसको इश्क.....!खलल है दिमाग का ...........
    KYA KHOOB LIKHA HAI ....MAZA AA GAYA

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  2. kya kavita hai...maan gaye janab...

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  3. very heart touching lines u have written in this poem...vaise to tumhari sari poetries fabulous hain, but the second last sher of this poem means alot........gud...keep it up.

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