दिवाली आते ही जेबें ढीली होने का डर सताने लगता है। सभी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। त्यौहार आने से पूरेघर का बजट बिगड़ जाता है पर करें भी तो क्या करें। बढ़ती मंहगाई ने अमीर व गरीब के बीच की खाई को औरगहरा कर दिया है। अब गरीब आदमी की तो मन गई दिवाली। वो तो सिर पकड़कर बैठ जाता है कि दिवाली कैसेमनाए। और अगर मंहगाई से बच गए तो नकली मिठाई, नकली पटाखे आदि आपका दीवाला निकाल देंगे और रही-सही कसर प्रदूषण और शराबी लोग पूरी कर देंगे। अब आप ही सोचिए
‘दिवाली या दिवाला’
-हिमांशु डबराल
दिवाली या दिवाला...
ReplyDeleteशुभकामना तो ले ही लें.
वाह बेबाक जी ...
ReplyDeleteआपने सही कहा है |
समाज का एक वर्ग आज भी ऐसा है जिसके लिए त्यौहार कोई ख़ुशी का मौका नहीं बल्कि एक मुसीबत है, 'मुसीबत'.........
अच्छी पोस्ट ... बधाई