 किस मोड़ पे तो पता  नहीं, हाँ लेकिन एक ऐसे मोड़ पर लाकर ज़रूर खड़ा कर दिया  है, जहाँ मोहब्बत  बाज़ारू नज़र आ रही है। वेलेन्टाइन वीक चल रहा है। बाज़ार,  प्यार के तोहफ़ों से  सजा हुआ है,  तोहफों की भरमार है बशर्ते  आपकी जेब में  दाम हो! वैसे भी नया  ट्रैण्ड यही है,‘जितना मंहगा गिफ्ट, उतना ज्यादा  प्यार’। ये नया ट्रैंड आज  के युवाओं में ज्यादा देखने को मिल रहा है। पूरे  वेलेन्टाइन वीक को कुछ इस  तरह बनाया गया है कि लगभग हर दिन कुछ-न-कुछ  गिफ्ट देने पर ही प्यार टिकाऊ  होता है। पूरा वेलेन्टाइन वीक बाज़ार के  हिसाब से बना हैं, असली मजे तो  गिफ्टशॉप वालों के आते हैं। क्या आज  रिश्तें, उपहारों के मोहताज़ हो गए हैं?
किस मोड़ पे तो पता  नहीं, हाँ लेकिन एक ऐसे मोड़ पर लाकर ज़रूर खड़ा कर दिया  है, जहाँ मोहब्बत  बाज़ारू नज़र आ रही है। वेलेन्टाइन वीक चल रहा है। बाज़ार,  प्यार के तोहफ़ों से  सजा हुआ है,  तोहफों की भरमार है बशर्ते  आपकी जेब में  दाम हो! वैसे भी नया  ट्रैण्ड यही है,‘जितना मंहगा गिफ्ट, उतना ज्यादा  प्यार’। ये नया ट्रैंड आज  के युवाओं में ज्यादा देखने को मिल रहा है। पूरे  वेलेन्टाइन वीक को कुछ इस  तरह बनाया गया है कि लगभग हर दिन कुछ-न-कुछ  गिफ्ट देने पर ही प्यार टिकाऊ  होता है। पूरा वेलेन्टाइन वीक बाज़ार के  हिसाब से बना हैं, असली मजे तो  गिफ्टशॉप वालों के आते हैं। क्या आज  रिश्तें, उपहारों के मोहताज़ हो गए हैं?  कुछ  लोगों का कहना है कि ये दिन प्यार ज़ाहिर करने के लिए बनाये गए  हैं। लेकिन  प्यार तो भावनाओं और आत्मा का विषय है। एक छोटा सा गुलाब भी  दिल की बात कह  सकता है जबकि लाखों की अंगूठी नहीं। वैसे भी जहां से ये  वेलेन्टाइन वीक  शुरू हुआ वहां क्यों डिवोर्स बढ़ते जा रहे हैं? क्यों वहां  प्यार, भावनाओं  और रिश्तों कि अहमियत को नहीं समझा जाता? सिर्फ प्यार की  बातें करने से या  प्यार के नाम एक दिन कर देने से कुछ नहीं होने वाला।  लेकिन फिर भी ऐसे  दिनों की ज़रूरत क्यों पड़ी? क्या तरक्की के इस दौर में हम  रिश्तों की अहमियत  भूलते जा रहे हैं? आज प्यार, प्यार नहीं बल्कि दिखावा  नज़र आता है। रिश्तें  मूल्य खोते जा रहे हैं, बस शेष रह गयी है तो  औपचारिकताएं जो ऐसे दिनों की  शक्लों में नज़र आ रही हैं। प्यार के इस बदलते स्वरूप को देखकर तो यह  लगता है, कि आज हम इन ढाई आखर  में छुपी भावनाओं को भूलते जा रहे हैं।  ‘इश्क-मोहब्बत’ तो बस किताबों और  फिल्मों में ही अच्छे लगते हैं। आजकल के  युवा तो हर वेलनटाइन तो अलग-अलग  साथी के साथ मनाते नज़र आते है। प्यार पल  में होता है और पल में खत्म भी हो  जाता है। ये कैसा प्यार है, जो बदलता  रहता हैं? लेकिन ऐसा नहीं है, कि आज के समय में प्यार पूरी तरह से  बाज़ारू हो गया  है। आज भी प्यार शब्द की गहराईयों को समझने वाले लोग हैं।  ऐसे कई मामले  सामने आए हैं, जहाँ प्यार की खातिर लोग जान तक गंवा बैठे हैं।  प्यार की  खातिर ही समाज से लड़ गए, तो कहीं धर्म जाति के बंधनों को भी  प्यार ने ही  तोड़ा है। प्यार केवल एक दिन का वेलनटाइन डे नहीं बल्कि ज़िदंगी  भर एक दूसरे  का साथ निभाना है। आज का समाज मशीनों से घिरा हुआ है जिससे  इंसान भी एक  तरह की मशीन  ही बनता जा रहा हैं। ऐसे में जरूरत है तो दिल को  मशीन बननें  से रोकने की और प्यार शब्द के उस एहसास को समझने की जिसे हम  भूलते जा रहे  हैं, नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब प्यार लफ्ज़ ही दुनिया से खो  जाएगा। बाकि आजकल के युवाओं के लिये एक कवि की नसीहत याद आती है - सरल सीखना है, बुरी आदतों का,  मगर उनसे पीछा छुड़ाना कठिन है। सरल ज़िन्दगी में युवक प्यार करना,  सरल हाथ में हाथ लेकर टहलना, मगर हाथ में हाथ लेकर किसी का,  युवक ज़िन्दगी भर निभाना कठिन है।। 
-हिमांशु डबराल himanshu dabral
 
 



