Monday, February 15, 2010

प्यार हमें किस मोड़ पे ले आया…

किस मोड़ पे तो नहीं, हां लेकिन एक ऐसे मोड़ पर लाकर जरूर खड़ा कर दिया है, जहां मोहब्बत बाज़ारी नज़र आ रही है। वेलनटाइन वीक चल रहा है, बाज़ार प्यार के तोहफों से लदा हुआ है, हर आदमी की जेब के हिसाब से तोहफे बिक रहे है। ऐसे में एक नया ट्रेण्ड शुरू हो गया है, ‘जितना मंहगा गिफ्ट उतना ज्यादा प्यार’। ये सब आजकल के युवाओं में ज्यादा देखने को मिल रहा है पूरे वेलनटाइन वीक को कुछ इस तरह बनाया गया है कि लगभग हर दिन कुछ-न-कुछ गिफ्ट देना ही पड़ता है। क्या आज रिश्ते इन उपहारों के मोहताज़ हो गए है?कुछ लोगों का कहना है कि ये दिन प्यार जाहिर करने के लिए बनाये गए हैं। लेकिन प्यार तो भावनाओं और आत्मा का विषय हैं। एक छोटा सा गुलाब भी दिल की बात कह सकता है जबकि करोड़ों की अंगूठी नहीं।
लेकिन फिर भी ऐसे दिनों की जरूरत क्यों पड़ी? क्या तरक्की के इस दौर में हम रिश्तों की अहमियत भूलते जा रहें हैं? आज प्यार प्यार नहीं, दिखावा नज़र आता है। रिश्‍ते मूल्य खोते जा रहे है, बस शेष रह गयी है तो औपचारिकताएं जो ऐसे दिनों की शक्लों में नज़र आ रही है।
प्यार के इस बदलते स्वरूप को देखकर तो यह लगता है कि आज हम इन ढ़ाई आखर में छुपी भावनाओं को भूलते जा है। ‘इश्क-मोहब्बत’ तो बस किताबों और फिल्मों में ही अच्छे लगते हैं। आजकल के युवा तो हर वेलनटाइन तो अलग-अलग साथी के साथ मनाते है। प्यार पल में होता है और पल में खत्म भी हो जाता है…ये कैसा प्यार है जो बदलता रहता हैं?
लेकिन ऐसा नहीं है, कि आज के समय में प्यार पूरी तरह से बज़ारी हो गया है। आज भी प्यार शब्द की गहराइयों को समझने वाले लोग है। ऐसे कई मामले सामने आए है, जहां प्यार की खातिर लोग जान तक गंवा बैठे है…प्यार की खातिर ही समाज से लड़ गए, तो कहीं धर्म जाति के बंधनो को भी प्यार ने ही तोड़ा है।
आज का समाज मशीनों से घिरा हुआ है जिससे इंसान भी एक तरह की मशीन ही बनता जा रहा हैं। ऐसे में जरूरत है तो दिल को मशीन बननें से रोकने की और प्यार शब्द के उस एहसास को समझने की जिसे हम भूलते जा रहे है, नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब प्यार लफ्ज़ ही दुनिया से खो जाएगा।
और क्या कहूं बस आज के युवाओं के लिये एक कवि की नसीहत याद आती है-

सरल सीखना है, बुरी आदत का,

मगर उनसे पीछा छुड़ना कठिन है।

सरल जिन्दगी में युवक प्यार करना,

सरल हाथ में हाथ लेकर टहलना,

मगर हाथ में हाथ लेकर किसी का,

युवक जिन्दगी भर निभाना कठिन हैं॥

-हिमांशु डबराल

himanshu dabral

Friday, February 12, 2010

सजा बन जाओ तुम...


दिल के रंजो-ग़म की दवा बन जाओ तुम,
या दिल के ज़ख्मो को जो दे सुकूं, एक बार ऐसी हवा बन जाओ तुम...

इस कदर चाहा है तुमको रात-दिन,
मेरी रूह में बसकर, मेरे ख़ुदा बन जाओ तुम...

कभी ख्वाबों में, यादों में क्यों आते हो तुम,
आना है तो, मेरी यादों का काफिला बन जाओ तुम...

जाने से तेरे, रुक सा गया है सब कुछ,
जो थम गया है, वो सिलसिला बन जाओ तुम...

हो सके तो एक बार फिर चाहो मुझे इतना,
दुनिया के लिए महोब्बत की, इन्तहां बन जाओ तुम...

तेरे आने की उम्मीद में कब से बैठे है हम,
ख़त्म करदे जो मेरी आस, ऐसा ज़लज़ला बन जाओ तुम...
.
कुछ ऐसा करो मेरे एहसासों के साथ,
रोते-रोते हँसने की अदा बन जाओ तुम...

तोड़ना है तो मेरे दिल को इस कदर तोड़ो,
मेरी वफ़ाओ की सजा बन जाओ तुम...


-हिमांशु डबराल