- गुर्दे की पथरी से बचने के लिए भरपूर पानी पियें
आज के दौर में जैसा की हम सभी भली भांति जानते हैं की हर आयु वर्ग के लोगों में गुर्दे के पथरी के मामलों में लगातार बढ़ रहे हैं, यह सबसे पीड़ादायक मूत्र सम्बन्धी विकार माना जाता है। तापमान और नमी बढ़ने से इसका क्या सम्बन्ध है, अब तक कोई इस विषय में सोच भी नहीं सकता था। अन्य कारणों के अलावा गुर्दे की पथरी की समस्या शरीर में होने वाले निर्जलीकरण से भी पैदा होती है, जो कि तापमान बढ़ने के कारण होती है। ऐसा तब होता है जब लोग पसीने के कारण अपने शरीर से जल की मात्रा खो देते हाई और जल की इस कमी को पूरा करने के लिए भरपूर मात्रा में पानी नहीं पीते। शरीर से जल का यह ह्रास मूत्र की सांद्रता को बढ़ा देता है जो अंततः गुर्दे में पथरी बनने का कारण है।
जाहिर है कि गर्मियों के दौरान तापमान बढ़ने के साथ ही गुर्दे की पथरी के मामले बढ़ेंगे और इस दौरान इन मामलों में 40 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो सकती है। मौसम, तापमान और नमी कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कारक हैं जो मूत्राशय की पथरी के बनने में अपना योगदान देते है। ऐसा पाया गया है की जब लोग औसत तापमान वाले इलाकों से गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में जाते हैं तो शरीर में पथरी बनने के मामलों में तेजी आती है। पथरी के रोग में एक ज्ञात भौगोलिक विविधता पायी जाती है, जो विभिन्न क्षेत्रो के तापमान के अंतर के कारण होती है।
गुर्दे की पथरी के ज्यादातर मरीज 25 से 45 आयुवर्ग के होते हैं, 50 वर्ष की आयु के बाद इसमे कमी पायी जाती है। महिलाओं की अपेक्षा पुरुष ज्यादा इस रोग के शिकार होते हैं, बच्चे भी इसके शिकार बन सकते हैं। 25 प्रतिशत मामलों में पाया गया है कि परिवार में गुर्दे की पथरी का इतिहास रहा है। भारत में 50 से 70 लाख लोग गुर्दे की पथरी के शिकार हैं।
भारत में लीथोट्रिपसी के जनक के रूप में प्रसिद्द और आरजी स्टोन यूरोलॉजी और लैप्रोस्कोपी अस्पताल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक डॉ. भीमसेन बंसल के अनुसार, के अनुसार, सामान्यता एक इंसान दिन भर में 1 से 1.5 लीटर मूत्र का स्राव करता है। पथरी मूत्र नलिका के किसी भी हिस्से में उत्पन्न हो सकती है, लेकिन यह ज्यादातर मूत्र नाली या गुर्दे में ज्यादा पायी जाती है। यह पथरी मूत्र में घुले हुए रासायनिक तत्वों के क्रिस्टल होते हैं। यह दाने के आकर के भी हो सकते हैं या फिर एक निम्बू के आकार के भी हो सकते हैं। मूत्राशय की पथरी आम प्रकार से कैल्शियम, यूरिक एसिड, स्ट्रूवित (संक्रामक) सिस्टीन औरस्टोन्स के 90 से 95% कैल्शियम ओक्ज्लेट से बनती है। गुर्दे की पथरी आम तौर पर कोई लक्षण नहीं पैदा करती जब तक कि वह मूत्रनलिका को अवरुद्ध न कर दे। जब यह मूत्र प्रवाह को अवरुद्ध करती है तो मूत्र नाली फैल जाती है और खिंचाव के कारण मांसपेशियों में ऐंठन शुरू हो जाती है, जिससे उदार के निचले हिस्से और गुर्दे में तीव्र दर्द उत्पन्न होता है। मूत्र ने रक्त का आना, मूत्र की अधिकता, दुर्गन्धयुक्त मूत्र विसर्जन, बुखार, कंपकंपी मितली और उलटी आदि इसके अन्य लक्षण हैं।
जो लोग ऐसे वातावरण में काम करते हैं जहाँ उन्हें पर्याप्त मात्रा में पानी पीने को नहीं मिलता, उनमे गुर्दे की पथरी होने की सम्भावना सबसे अधिक होती है। वातावरण में 5-7 डिग्री के तापमान परिवर्तन से ही गुर्दे की पथरी के 30 प्रतिशत मामले बढ़ जाते हैं। भारत के गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों जैसे दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में गुर्दे की पथरी के मामले सबसे अधिक पाए जाते हैं, इन इलाकों को स्टोन बेल्टश् के नाम से जाना जाता है।
ऐसे में सलाह दी जाती है कि गर्मियों में पानी के नुकसान को पूरा करने के लिए भरपूर मात्रा में पानी पिया जाए। पानी की यह मात्रा एक साथ नहीं ग्रहण करनी चाहिए। यह दिन भर में काम से समय के अनुसार 7-8 घंटे के अंतराल में बाँट देना चाहिए। आम तौर पर हर गहनते एक ग्लास पानी पीना चाहिए। पानी के अलावा भरपूर मात्रा में तरल पदार्थ जिनमे प्रोटीन, सोडियम, फॉस्फोरस या कैफीन न हो, पीने से भी गुर्दे के पथरी से बचा जा सकता है। कुछ दवाएं भी गुर्दे के पथरी की गंभीरता को बढ़ा सकती हैं इसलिए आइबूप्रोफेन, मोटरिन और अलिएवे से परहेज रखना चाहिए। एक मिथक है की बियर से गुर्दे की पथरी घुल जाती है, जबकि बियर ओक्ज्लेट और यूरिक एसिड का बड़ा स्रोत है, जो गुर्दे की पथरी की समस्या को बढ़ा सकता है।
गुर्दे की पथरी का इलाज उसके आकार, उसके बनने के स्थान, प्रकृति और मरीज के अवस्था पर निर्भार करता है। यह इलाज पारंपरिक विधि से या सर्जरी के द्वारा किया जा सकता है। नयी तकनीकों के आविष्कार के साथ ही ओपन सर्जरी की आवश्यकता में काफी कमी आयी है। छोटे आकार की पथरी जिनका आकार 1.5 सेमी से कम होता है, को लिथोत्रिप्टर के जरिये शरीर के बाहर से संवेदी तरंगों के झटके से तोड़ा जा सकता है। इस विधि को एक्स्ट्राकोरपोरेअल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी कहा जाता है। इस विधि द्वारा तोड़ी गयी पथरी के छोटे छोटे टुकड़े अगले कुछ दिनों में मूत्र के साथ शरीर से बाहर निकल जाते हैं। 1.5 सेमी से बड़े आकार की पथरी के लिए पर्क्युटेनीयस नेफ्रोलिथोटोमी विधि का प्रयोग होता है। यह एक कीहोल सर्जरी है, जिसमें एक टनल बनाकर पथरी को तुरंत बाहर निकाल दिया जाता है। यह सबसे ज्यादा प्रचलित विधि है। उरेटेरेओंस्कोपी एक अन्य सफल विधि है, जिसे मूत्र नलिका से पथरी निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस विधि में एक नली को मूत्र नली के जरिये मूत्र थैली के रास्ते डाला जाता है, यह कठोर नली मूत्रनली श्रोणिकी संधि तक ही काम करती है। रेट्रोग्रेड इन्फ्रा रीनल सर्जरी की विधि में लचीली नली का प्रयोग होता है। यह मूत्र नलिका के किसी भी हिस्से में स्थित पथरी को निकालने में प्रभावी है। लेप्रोस्कोपिक विधि का प्रयोग उन मामलों में किया जाता है जहाँ अन्य तरीके सफल नहीं हो सकते या अनुपयुक्त होते हैं, या पथरी शरीर के किसी दुर्गम हिस्से में स्थित हो या फिर पथरी को छोटे टुकड़ों में तोडा जाना संभव न हो।